इल्मी शोबे (एकेडमिक विभाग)

इल्मी शोबे (एकेडमिक विभाग)
1. शोबा दारुल इफ़्ता (फ़तवा विभाग)
2. इंटरनेट व आॅन लाइन फ़तवा विभाग
3. शोबा तबलीग़ (धार्मिक प्रचार विभाग)
4. मजलिस तहफ़्फ़ुज़ ख़त्म-ए-नबुव्वत
5. शोबा रद्द-ए-ईसाइयत
6. शोबा तहफ़्फ़ुज़ सुन्नत
7. शोबा मुहाज़रात इल्मिया
8. शेखुल हिन्द एकेडमी
9. राबता मदारिस इस्लामिया
10. शोबा तरतीब फ़तावा
(1) दारुल इफ़ता (फ़त्वा विभाग)
दारुल इफ़ता दारुल उ़लूम का महत्वपूर्ण शोबा है। दारुल उ़लूम की स्थापना होते ही मुल्क के चारों ओर से फ़त्वा मंगाने का एक बड़ा सिलसिला आरम्भ हो गया। आरम्भ में अलग शोबा नहीं था बल्कि उस्तादों को ही फ़त्वे का काम सौंपा गया था। मगर जब फ़त्वों की मांग अधिक बढ़ गई तो 1310/1882 में दारुल इफ़ता के नाम से अलग विभाग स्थापित किया गया। उस समय से अब तक ऐसे ह़ज़रात इस सेवा पर नियुक्त होते रहे हैं जिन को फ़िक़ह में अधिक से अधिक अनुभव प्राप्त था।
दारुल इफ़ता से जो फ़त्वे मांगे जाते हैं उन में प्रति दिन के मामूली मसलों के अ़लावह पेचीदह और ग़ौर तलब मसले, पंचायतों के फ़ैसले, अ़दलतों की अपीलें और विविध आदेश अधिकता से होते हैं। दारुल इफ़ता का कर्तव्य है कि वह जानकारी करने वालों को पूरी तह़क़ीक़ (ख़ोज) और स्पष्टता के साथ शरीअ़त के मसले बताये। अ़वाम के अ़लावह अ़ालिम भी अक्सर मसले पूछते हैं। इस महत्व और नज़ाकत के बावजूद दारुल इफ़ता का काम आ़म और ख़ास मुसलमानों में सदैव इत्मिनान और महवपूर्ण समझा जाता है।
(2) इंटरनेट व आॅन लाइन फ़तवा विभाग
वर्तमान युग की इन्फ़ाॅर्मेशन तकनीक और दूरसंचार के माध्यम की आश्चर्यजनक तरक़्क़ी जहां अनेकों सियासी, समाजी और धार्मिक समस्यायें पैदा करती है वहीं कम्प्यूटर इंटरनैट का अच्छा पक्ष यह सामने आया है कि इन साधनों का प्रयोग करके इस्लामी पैग़ाम और धार्मिक शिक्षा को बड़ी तेज़ी से दुनिया भर में फैलाया जा सकता है। दारुल उ़लूम देवबन्द ने इस बात को समझते हुए 1415/1996 में कम्प्यूटर विभाग क़ायम किया और मुल्क में इंटरनेट सर्विस शुरू होते ही 2002 में इंटरनेट प्रभाग (सेक्शन) आरम्भ कर दिया जिसे बाद में अलग विभाग बना दिया गया। यह विभाग दारुल उ़लूम वेबसाईट और आॅन लाइन फ़तवा वेबसाईट की देख रेख के अतिरिक्त इंटरनेट से जुड़े अन्य कार्य करता है। स समय दारुल उ़लूम की वेबसाईटें ऐशिया, यूरोप, अर्फ़ीक़ा, अमेरिका, आॅस्टघ्ेलिया के लगभग सभी देशों में देखी और पढ़ी जाती है। प्रतिमाह पचास से अधिक देशों के एक हजार से अधिक लेाग इमेल द्वारा सम्पर्क करते हैं और अपने प्रश्नों का उत्तर पाते हैं।
दारुल उ़लूम वेबसाईटः दारुल उ़लूम वेबसाईट चार भाषाओं – उर्दू, अ़रबी, इंग्लिश और हिन्दी में है। इन भाषाओं में दारुल उ़लूम की जानकारी, पूर्वजों का संक्षिप्त विवरण, कुछ प्रसिद्ध पुस्तकें आदि डाली गयी है। अ़रबी मासिक ’अल-दाई’ और उर्दू मासिक ’दारुल उ़लूम’ के अंक वेबसाईट पर डाले जाते हैं। 1429/2008 से दारुल उ़लूम के सालाना परीक्षण के परिणाम (रिज़लट) भी वेबसाईट पर डाले जाते हैं। दारुल उ़लूम का तराना और तस्वीरें, दारुल उ़लूम के बैंक अकाउण्ट और पैसा भेजने के तरीक़े भी दिये गए हैं।
दारुल इफ़ता वैबसाईटः दारुल उ़लूम देवबन्द ने इंटरनैट पर इमेल के द्वारा आने वाले फ़तवों की अधिकता को देखते हुए 2007 में एक फ़तवा वेबसाईट चालू कर दी है। उर्दू और अंग्रेज़ी भाषाओं में यह डाटाबेस वेबसाईट इस प्रकार की सर्विस देने वाली दुनिया की चन्द गिनी चुनी वेबसाईटों में से एक है। दारुल उ़लूम देवबन्द से फ़तवा चाहने वाले इस वेबसाईट पर आकर सवाल कर सकते हैं। सवाल अंग्रेज़ी या उर्दू किसी भी भाषा में किया जा सकता है। अब तक इस वेबसाईट पर उर्दू में लगभग 13000 और अंग्रेज़ी में लगभग 6000 फ़तवे प्रकाशित हो चुके हैं।
(3) शोबा तबलीग़ (प्रचार विभाग)
तबलीग (प्रचार) दारुल उ़लूम की दीनी और मसलकी ज़िम्मेदारी है जो इस विभाग से सम्बंधित है। इस की स्थापना 1342/1934 मंे उस समय हुई जब हिन्दुस्तान में शुद्धी और संगठन का आन्दोलन फैला। उस समय इस विभाग के प्रयत्न से लाखों मुसलमान धर्म परिवर्तन से बच गये और सामान्य रूप से मुसलमानों में इसलाम और उस के आदेशों पर पक्का यक़ीन हो गया।
इस के बाद से आज तक यह शोबा (विभाग) प्रचार व प्रसार के काम में लगा है। इस शोबे में प्रचारक काम करते हैं जो विभिन्न क्षेत्रों में मदरसों और अ़ाम मुसलमानों के बुलावे पर यात्रा करने के अ़लावह अपने आधार पर भी प्रचार के लिये यात्रा करते हैं। निः सन्देह उन का प्रयत्न मुसलमानों को दीन इसलाम पर स्थिर रखने और दारुल उ़लूम के स्मीप लाने में महत्वपूर्ण कार्य है।
(4) आॅल इंडिया मजलिस तह़़फ्फ़ुज़-ए-ख़त्म-ए-नुबुव्वत
क़ादयानी फितना को दबाने के लिये दारुल उ़लूम ने अपनी पुरानी परम्प्रा के मुताबिक़ 29 से 31 अक्तूबर 1986 को अन्तरराष्ट्रीय इजलास तह़़फ्फ़ुज़-ए-ख़त्म-ए-नुबुव्वत किया, और इसी जलसे में मजलिस तह़़फ़ुज़-ए-ख़त्म-ए-नुबुव्वत की स्थापना की गयी ताकि संगठित रूप से इस पाखण्ड का पीछा किया जाये। अतः यह मजलिस अपने स्थापना दिवस ही से उद्देश्य पूर्ति के लिये प्रयत्नशील है। और समय-समय पर इस शोबे के आधीन हिन्दुस्तान के विभिन्न शहरों में तरबियती कैम्प लगते रहते हैं जिन में विशेष रूप से दारुल उ़लूम के शुभचिंतक उस्ताद और मजलिस तह़़फ्फ़ुज़-ए-ख़त्म-ए-नुबुव्वत के ज़िम्मेदारों के अ़लावह दूसरे बड़े विद्वान भाग लेते हैं।
क़ादियानियत के खण्डन के विषय पर दारुल उ़लूम के फ़ारिग़ विद्वानों को टेªनिंग देना भी इस शोबे की जिम्मेदारी है। अतः प्रतिवर्ष कुछ विद्वानों का दाख़ला एक साल के लिये मंजूर किया जाता है। दूसरे मदरसों के उस्तादों की टेªनिंग के लिये भी छह महीने का कोर्स है।
मजलिस की ओर से या उस की देख-रेख में, यूपी, दिल्ली, बिहार, बंगाल, पंजाब, आंध्रा प्रदेश, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, महाराष्ट्र, करनाटक, तमिलनाडू , आसाम, मैघालय, राजस्थान, और नेपाल के बहुत से स्थानों पर सैकड़ों छोटे बड़े जलसे और कांफ्रेंसें की गयी हैं। इस के अ़लावह बड़े प्रोग्राममों की तैयारी के सिलसिले में सैकड़ों मस्जिदों में प्रोग्राम किये गये हैं, जिन की बरकत से लाखों लोगों ने क़ादयानियों के धोखे को समझा। क़ादयानी प्रचारक जगह जगह वाद-विवाद करने के लिये चेलैंज करते हैं। मजलिस ने इस क्षेत्र में भी इन का पीछा किया। प्रत्येक स्थान पर क़ादयानी या तो बहस में अनुत्तर हो गये या चेलैंज दे कर छुप गये। इस प्रकार की घटनायें आए दिन सामने आती रहती हैं।
मजलिस की सेवाओं का एक प्रकाशमान पक्ष यह है कि इस के प्रयत्न से बड़ी संख्या में क़ादयानियों को तोबा करने का सौभाग्य मिला है। जिस में कई क़ादयानी प्रचारक और परिवार सम्मिलित हैं। क़ादयानियत से तोबा करने की यह घटनायें यूपी, बिहार, बंगाल, आसाम, हैदराबाद, और दिल्ली आदि अनेकों स्थानों पर घठित हुई हैं। इस के अ़लावह बहुत से स्थानों से क़ादयानी उस्तादों को हटा कर मुस्लिम अध्यापकों की नियुक्ति कर दी गयी है। यह विभाग अब तक अनेकांे पुस्तकें और पम्फलेट छाप चुका है।
(5) शोबा रद्दे ईसाइयत
दारुल उ़लूम की स्थापना इस समय हुई थी जब मुल्क पूरी तरह ईसाईयों के हाथ में जा चुका था और ईसाई मुसलमानों के धर्म पर हमला कर रहे थे। अंग्रेज़ों के प्रशिक्षित ईसाई मुल्क में हर जगह प्रचार कर रहे थे। इन से टक्कर लेने और प्रचार रोकने के लिये दारुल उ़लूम ने बेड़ा उठाया और हर मैदान में ईसाई मिश्नरी का मुक़ाबला किया और उनके कामों पर पानी फेर दिया।
इस के एक सदी के बाद ईसाइयत ने मुल्क में फिर से सिर उठाया। जब इसका पता दारुल उ़लूम को लगा तो मजलिस-ए-शूरा ने 1419/1998 में शोबा रद्दे ईसाइयत स्थापित किया। इस शोबे में अनेकों किताबचे लिखे गये और ईसाईयों के ऐतराज़ का जवाब दिया गया। मुल्क के विभिन्न स्थानों पर शिविर लगाये गये। इस संबंध में 1422 हिजरी में दारुल उ़लूम में दो दिवसीय प्रशिक्षण कैम्प लगाया गया जिसमें बंगाल, बिहार, राजस्थान, कश्मीर, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडू से उलमा पधारे। प्रतिवर्ष दो आलिमों को दारुल उ़लूम में दाखि़ला दे कर उन्हें इस विषय पर तैयार किया जाता है कि वे ईसाइयत से मुक़ाबला कर सकें।
(6) शोबा तह़फ़ुज़-ए-सुन्नत
भारतीय प्रायद्वीप में ग़ैर मुक़ल्लदियत लगभग दो सौ साल पहले से थी और देवबन्द के उलमा को शुरू से ही इस से विरोध था। लेकिन अ़रब मुल्कों में ग़ैर मुक़ल्लिदों ने देवबन्द के उलमा के विरूद्ध विचार फैलाये। इस से नौजवानों में इसका बुरा प्रभाव पड़ा। दारुल उ़लूम ने इस फितने का मुक़ाबला करने के लिये छात्रों को तरबियत देने के लिये मुहाज़रात का सिलसिला आरम्भ किया और 1427/2006 में शोबा तह़फ्फ़ुज़-ए-सुन्नत क़ायम हुआ।
(7) दफ़तर मुहाज़रात इल्मिया
दारुल उ़लूम देवबन्द अपने कार्यों को सुचारू से चलाने के लिये योग्य अफ़राद बनाने का प्रयत्न करता है। प्रतिदिन जो नये संकट धर्म में आते हैं, दारुल उ़लूम अपनी ज़िम्मेदारी मानता है कि उन को ठीक करे। इस काम के लिये मुहाज़रात इल्मिया के नाम से यह शोबा खोला गया है। इस में आठ विषयों पर छात्रों को लेकचर दिये जाते हंै जो निम्न प्रकार हैः 1. गै़र मुक़ल्लिदियत 2. बरेलवियत 3. मौदूदियत 4. क़ादियानियत 5. शिईयत 6. यहूदियत 7. ईसाइयत 8. हिन्दुमत।
प्रत्येक विषय पर पांच लेकचर होते हैं। प्रत्येक विषय पर अलग-अलग उस्ताद हैं जो अपने विषय पर अलग लेख लिखते हैं। बृहस्पितिवार को जु़हर के बाद छात्रों के सामने वह मज़मून पढ़ा जाता है। इस शोबे में दौरा ह़दीस के फ़ारिग़ छात्र शरीक होते हैं। पेपर पढ़ते वक़्त सवाल जवाब होते हैं।
(8) शेख़ुल हिन्द एकेडमी
देवबन्द के पूर्वजों के ज्ञान की सुरक्षा और उन को प्रकाशित करने के उद्देश्य को दृष्टि में रख कर 1403/1983 में शैखु़ल हिन्द एकेड़मी की स्थापना हुई। दारुल उ़लूम देवबन्द का यह तह़क़ीक़ी (शोध) और सम्पादनिक शोबा कहलाता है। जिस के मुख्य उद्देश्य निम्न प्रकार हैंः (1) अपने पूर्वजों के इ़ल्मी ख़ज़ाने की सुरक्षा (2) पूर्वजों के व्यक्तित्व और सेवायें और वर्तमान समय मेें सम्पादन, लेखन और प्रकाशन का कार्य करके मुसलमानों और अ़रब की जनता को परिचित कराना। (3) मसलक दारुल उ़लूम और दूसरे विषयों पर शोध गर्भित पुस्तकें लिख कर छपवाना। (4) विद्यार्थियों को लेखन और सम्पादन का कार्य सिखाना।
शैखु़ल हिन्द एकेड़मी अपने स्थापना दिवस ही से कार्यकर्ताओं की देख रेख में अपने उद्देश्यों को पूरा करने में लगनशील है। पूर्वजों के इ़ल्मी सरमाये को सुरक्षित रखने के सिलसिले में एकेडमी कार्यश्ील है कि उन के लेखन कार्य में तबदीली किये बग़ैर इमला और शैली को क़ायम रखकर फुटनोट के द्वारा आसान करके छपाई की कमी को साफ़ कर के प्रकाशित किया जाये। दूसरे विषयों पर भी एकेडमी पुस्तकें तैयार कराती है। या तैयार हुए मैटर को देख कर, यदि वे एकेडमी के स्तर के हैं तो एकेड़मी उन की छपाई का प्रबन्ध करती है।
अब तक एकेडमी से जो अहम पुस्तकें तैयार होकर छप चकी हैं उनके नाम निम्न प्रकार हैं। (1) शूरा की शरई़ है़सियत (2) तफ़हीमुल क़ुरआन का तह़क़ीक़ी जायज़ह (3) अइम्मा-एर्-अबआ (4) तदवीन सेयरे मग़ाज़ी (5) अदिल्ला-ए-कामिलह (6) ईज़ाह़ुल अदिल्लह (7) अयोध्या के इसलामी आसार (8) शिई़यत क़ुरआन और ह़दीस की रोशनी में (9) ख़ैरुल क़ुरून की दरसगाहें (10) लआली मंसूरह (अ़रबी) (11) मौलाना मुह़म्मद क़ासिम नानौतवी ह़यात और कारनामे (12) मौलाना रशीद अह़मद गंगोही, ह़यात और कारनामे (13) ह़ज़रत शैखु़ल हिन्द ह़यात और कारनामे (14) ख़्वातीने इसलाम की दीनी व इ़ल्मी खि़दमत (15) अल-अ़क़ल वन्नक़ल (अ़रबी) (16) मुसलमानों के हर पेशे में इ़ल्म व उ़लमा (17) आइना-ए-ह़कीक़त नुमा (18) तज़किरतुन्नोमान (19) इशाअते इसलाम (20) तक़रीरे दिल पज़ीर (21) ताइफ़ा-ए-मंसूरह (22) अल-ह़ालतुत्तुाअ़लीमियह फ़ी अ़हदिल (अ़रबी) (23) अल-इसलाम वल-अ़क़लानियह (अ़रबी) (24) ज़कात के मसले (25) उ़लमा देवबन्द इत्तिजाहु हुमुदीनी व मिज़ाजुहुमुल मज़हबी (अ़रबी) (26) मजमूअ़ा हफ़त रसाइल (27) अ़हदे रिसालत, ग़ारे हि़रा से गुम्बदे ख़ज़रा तक (28) दारुल उ़लूम देवबन्द, मदरसतुन फ़िकरियुतन (अ़रबी)!
शैखु़ल हिन्द एकेड़मी में विद्यार्थियों को लेखन और सम्पादन का गुण भी सिखाया जाता है।
(9) राबता-ए-मदारिस इस्लामिया अ़रबियह
दारुल उ़लूम देवबन्द को प्रथम दिन ही से केन्द्र बिन्दू का दर्जा रहा है। और हिन्दुस्तान में स्थापित होनेे वाले मदरसे वैचारिक आधार पर दारुल उ़लूम देवबन्द से सम्पर्क रखे हुए हैं। इस लिये दारुल उ़लूम अधिकारिक रूप से विभिन्न क्षेत्रों में इसलामी मदरसों को सहयोग और उन का मार्गदर्शक करता है। लेकिन कुछ समय पूर्व ऐसे ह़ालात पैदा हुए कि कार्याें के विभिन्न प्रभाव के कारण नियमानुसार अपने आधीन करने के मार्ग में कठिनाइयां आड़े आईं। इस सम्बन्ध में सोच विचार के लिये 20, 21 मुह़र्रम 1415 हि./जून 1995 को एक नुमाइन्दा इजलास तलब किया गया जिस में मुल्क के सत्तर बड़े मदरसों ने भाग लिया और दारुल उ़लूम में आॅल इंडिया राबता-ए-मदारिस इस्लामिया अ़रबियह का विभाग शुरू हुआ।
राबता-ए-मदारिस पाठयक्रम व तरबियत और मदरसों की मुश्किलात के बारे में सात सुझाव पास करता है और सशोंधन के बाद तैयार होने वाले पाठयक्रम लागू करने की सिाफ़ारिश करता है। अब तक नियमानुसार 25000 से अधिक मदरसे मेम्बर बन चुके हैं। राबता-ए-मदारिस अ़रबियह बड़ी छान बीन के बाद मदरसों को अपनी सदस्यता देता है।
राबता-ए-अ़रबियह तेज़ी के साथ उन्नति कर रहा है। नियमावली के अनुसार राबते के प्रबन्ध के मुताबिक़ 20 रजब 1416/1996 को पहला अधिवेशन हुवा, दूसरा अधिवेशन जून में हुवा। इसी अधिवेशन में राबते के लिये नियम बनाये गये और मदरसों के लिये ज़ाबता अख़लाक़ बने और दूसरे अहम कायों को पूरा करने के लिये राबते की मजलिस अ़ामला का संगठन किया गया। तजावीज़ की रोशनी में 51 रुकनी मजलिस-ए-अ़ामिला का का़यम हुई जिस में मजलिस-ए-शूरा दारुल उ़लूम देवबन्द से दस सदस्य, दस दारुल उ़लूम के अध्यपक, 31 विभिन्न प्रान्तों के सदस्य शामिल हैं। इसी अधिवेशन में अध्यपकों की ट्रेनिंग सुझाव भी तैय पाया जिस का तरीक़ा निश्चित होकर इस को कार्यविन्त किया जा चुका है।
1998 उत्तर प्रदेश हुकूमत ने मज़हबी इमारत रेग्यूलेशन बिल पास करके मुसलमानों का मूल अधिकार समाप्त करने का प्रयत्न किया। दारुल उ़लूम ने 12 नवम्बर 1998 को पूरे देश के विद्वानों को बुलाकर इजलास में इसकी मुख़ालिफ़त की और यह बिल सर्दख़ाने में डाल दिया गया। इसी प्रकार जब यू.पी. सरकार ने स्कूलों में वन्दे मात्रम गीत पढ़ना अनिवार्य कर दिया था तो उस समय भी दारुल उ़लूम ने कुल हिन्द जलसा करके नाराज़गी जताई। सरकार ने इस फैसले को भी वापस ले लिया। फरवरी 2008 में आतंकवाद विरोधी कुल हिन्द इजलास बुलाया जिसमें बीस हज़ार उलमा शरीक हुए। इस का अच्छा प्रभाव पड़ा। इसी प्रकार केन्द्रीय सरकार की मदरसा बोर्ड की योजना के विरूद्ध कुल हिन्द राबता मदारिस का इजलास हुआ। हुकूमत ने इस योजना पर भी रोक लगा दी। इसी प्रकार हुकूमत के राईट टू एजूकेशन एक्ट और डायरेक्ट टैक्सेज़ कोड के खि़लाफ़ भी आवाज़ उठाई गयी क्योंकि मदरसों पर उनके कार्यों पर रूकावट आ रही थी। राब्ता मदारिस अरबिया हर तीन साल बाद मजलिस-ए-अ़ामिला और मजलिस-ए-उ़मूमी का इजलास करता है।
(10) शोबा तरतीब फ़तावा
दारुल उ़लूम में दारुल इफ़ता का स्थाई शोबा 1310/1892 में शुरू हुआ। शुरू में फ़तवे की नक़ल रखने का नियम नहीं था। 1329/1912 में नक़ल रखने का सही प्रबन्ध हुआ। दारुल उ़लूम में 1866 से 1928 तक के 47 सालों की नक़ल नहीं है। फ़तावा तरतीब देने का काम पुनः 1374/1955 से आरम्भ हुआ जब क़ारी मुह़म्मद तय्यब साह़ब के सुझाव पर केवल मुफ़ती अज़ीज़ुर्रहमान के फ़तवों को जमा करने का काम शुरू हुआ जो बाद में ’फ़तावा दारुल उ़लूम’ के नाम से प्रकाशित हुए। पहली जिल्द 1382 हिजरी में प्रकाशित हुई।
तरतीब फ़तावा का दूसरा दौर 1425/2005 में शूरा के सदस्य ह़ज़रत मौलाना बदरूद्दीन अजमल की कोशिश से मजलिस-ए-शूरा की मंजू़री मिलने के बाद शुरू हुआ। ह़ज़रत मौलाना मुफ़ती अज़ीजु़र्रह़मान के फ़तवों की तरतीब की जा रही है जो कुल 18 जिल्दों पर पूरे होंगे।
तरतीब फ़तावा के लिये अलग से दफ़तर है जहां फ़तवों की तरतीब पर काम चल रहा है। इस फ़तवे के अलावा दूसरे मुफ़ितयों के फ़तवे भी सुरक्षित रखे जा रहे हैं। सुरक्षित रखने का यह काम कम्प्यूटर पर चल रहा है। 1432/2010 तक ह़ज़रत मुफ़ती अज़ीजु़र्रह़मान साह़ब के अलावा ह़ज़रत मुफ़ती शफ़ी उस्मानी, ह़ज़रत मौलाना ऐज़ाज़ अली आदि मुफ़तियों के 65 से अधिक रजिस्टर (लगभग 25000 पृष्ठ) टाईप किये जा चुके हैं।