दारुल उ़लूम के कार्य को सुचारू रूप से चलाने के लिये अनेक कार्यालय और विभाग क़ायम किये गये हैं। सामान्य रूप से दारुल उ़लूम का नाम यद्यपि एक मदरसा ही है लेकिन अपने विस्तृत प्रबन्धात्मक दृष्टि कोण से एक सम्पूर्ण जामिअ़ा (विश्वविद्यालय) और परिणाम के अनुसार इस से भी आगे बढ़ा हुआ है। दारुल उ़लूम का प्रबन्ध वर्तमान में लगभग तीन दर्जन विभागों और कार्यालयों पर आधारित है। प्रत्येक शोबा अपने अन्दर एक संस्था हैै। प्रत्येक विभाग का कार्यक्षेत्र अलग है। प्रत्येक विभाग (शोबे) का एक नाज़िम या ज़िम्मेदार होता है जो अपने अधिकारों की सीमा में रह कर विभाग के कार्याें को चलाता है। नाज़िम अपने कार्य को मोहतमिम की निगरानी में करता है। इन सभी विभागों को कुल तीन भागों में बांटा जा सकता है।
प्रबन्धन (इन्तज़ामिया) से संबंधित विभाग –
1. शोबा एहतमाम (प्रशासनिक विभाग)
2. शोबा मुहासबी (वाणिज्यिक विभाग)
3. शोबा मुहाफ़िज़ ख़ाना (संग्राहलय विभाग)
4. कुतुबख़ाना (पुस्तकालय)
5. शोबा तंज़ीम व तरक़्क़ी (व्यवस्था व विकास का विभाग)
6. दारुल इक़ामा (छात्रावास विभाग)
7. शोबा मतबख़ (रसोईघर)
8. शोबा तामीरात (निर्माण विभाग)
9. शोबा अवक़ाफ़ (संस्था की वक़फ़ जायदादों से संबंधी विभाग)
10. शोबा सफ़ाई व चमनबन्दी
11. मकतबा दारुल उ़लूम (प्रकाशन विभाग)
12. शोबा बरक़ियात (बिजली विभाग)
13. अज़मत अस्पताल (चिकित्सा विभाग)
14.माहनामा दारुल उ़लूम (उर्दू पत्रिका)
15. माहनामा अल-दााइऱ् (अ़रबी पत्रिका)
16. मेहमान खाना (अतिथि गृह)
17. शोबा कम्प्यूटर टाइपिगं
18. शोबा ख़रीदारी
19. शोबा स्टाॅक रूम
(1) शोबा-ए-एहतमाम (प्रशासनिक विभाग)
शोबा एहतमाम कानूनी तौर पर दारुल उ़लूम का केन्द्रीय विभाग है। यह तमाम शोबों को अपने आधीन और देख रेख में चलाता है। मजलिस-ए-शूरा व अ़ामिला की प्रस्ताव और फ़ैसले एहतमाम ही के द्वारा लागू किये जाते हैं। शोबों के की देखेभाल के अ़लावह दारुल उ़लूम का बाहर से सम्बन्ध भी इसी शोबे द्वारा होता है। इस कारण शोबा एहतमाम को विशेष स्थान प्राप्त है।
एहतमाम के अहम मंसब (पद) के लिये सदैव यह नियम दृष्टि में रखा जाता है कि इस के लिये ऐसे व्यक्तित्व का चुनाव किया जाता है जो शिक्षा और ज्ञान, ईमानदारी, तक़वा और प्रबन्धात्मक कार्यों में विशेष योग्यताओं के मालिक होने के अतिरिक्त मुल्क में अपना एक विशेष प्रभाव रखते हांे। एहतमाम का यह शोबा दारुल उ़लूम के तमाम कामों के सम्बन्ध के सिलसिले में सीधा मजलिसे शूरा का उत्तरदायी है। इस शोबे का कार्यालय मुख्य दरवाज़े के उपर स्थित है जिस का निर्माण 1315/1898 में हुआ था।
(2) शोबा-ए-मुह़ासबी (वाणिज्यिक विभाग)
अपनी दशा के आधार पर यह शोबा बहुत ही मत्वपूर्ण है। दारुल उ़लूम की स्थापना के दूसरे साल ही इस की स्थापना हो गई थी। दारुल उ़लूम के पूर्ण आमदनी और ख़र्च का हि़साब इसी विभाग से सम्बंधित है। सभी दफ़तरों और शोबों से आने वाले बिलों की जांच और मंजूरी के बाद उन की अदायगी, बैंकों से सम्बंधित मामले और विद्यार्थियों के वज़ीफ़ों और आमदनी व ख़र्च से सम्बंधित तमाम कामों को पूरा करना इसी शोबे की ज़िम्मेदारी है। हर क़िसम की आमदनी व ख़र्च की शोबेवार और मदवार विस्तार रखना इस का कर्तव्य है। कोई भी चीज़ बिना रसीद के दाखि़ल और बग़ैर वावुचर के ख़र्च नहीं की जाती है। दारुल उ़लूम का ख़ज़ाना इसी शोबे के माध्यम से मोहतमिम साह़ब के आधीन रहता है।
दारुल उ़लूम की दूसरी विशेषताओं की तरह़ शोबा मुह़ासबी भी हि़साब व किताब की सफ़ाई व सुथराई में अपना अलग स्थान रखता है। जांच पड़ताल के लिये उसका दरवाज़ा हर व्यक्ति के लिये हर समय खुला रहता है। दूसरे शोबों के द्वारा जो ख़र्च होता है उनकी जांच पड़ताल भी मुह़ासबी के आधीन है। दारुल उ़लूम का सालाना बजट तैयार करना और फिर ख़र्च को इसी बजट से सीमित रखने का प्रयत्न करना भी इसी शोबे की ज़िम्मेदारी है।
(3) मुह़ाफ़िज़ ख़ाना (संग्राहलय)
मुह़ाफ़िज़ ख़ाना दारुल उ़लूम का वह महत्वपूर्ण विभाग है जो अपने अन्दर दारुल उ़लूम की पूर्ण तारीख रखता है। इस विभाग का मूल उद्देश्य दारुल उ़लूम के पूरे रिकार्ड की सुरक्षा और व्यवस्था है। परन्तु इस के अतिरिक्त भी कुछ महत्वपूर्ण कार्य भी इस विभाग के जिम्मे हैं। दारुल उ़लूम के तमाम विभागों के काग़ज़, क़लम, इंक और स्टेशनरी से सम्बंधित पूरा सामान सप्लाई करना इसी विभाग का कार्य है। इसी प्रकार तमाम विभागों को रजिस्टर, रसीदें, दूसरे आवश्यक काग़ज़ात का छपवाना और समाप्त होने पर मंगाना इन तमाम कामों का हि़साब भी इसी शोबे के आधीन आता है।
(4) कुुतुबख़ाना (पुस्तकालय)
कुतुबख़ाना (पुस्तकालय) किसी भी विद्यालय के लिये अनिवार्य है। यही कारण है कि दारुल उ़लूम ने आरम्भ ही से पुस्तकालय पर विशेष ध्यान दिया है। सब से पहले कुछ किताबें विद्यार्थियों के पढ़ने के लिये मंगाई गयीं। इस के पश्चात किताबों को जमा करने का सिलसिला आरम्भ हुवा जो आज तक जारी है। इस समय दारुल उ़लूम के पुस्तकालय में दो लाख से अधिक पुस्तकें हैं। जिन में पाठय पुस्तकें और सामान्य हर विषय की पुस्तकें हैं। यह पुस्तकें बीस से अधिक भाषाओं में सौ से अधिक विषयों पर हैं।
इस पुस्तकालय की सबसे बड़ी विशेषता है कि यहां अमूलय मखतूतात (हस्थ लिखित सामग्री) का संग्रह है जिन में कुछ के सम्बन्ध में यक़ीन के साथ कहा जा सकता है कि उन का अस्तित्व, दारुल उ़लूम के पुस्तकालय के अतिरिक्त दुनिया में कहीं नहीं है। कुतुबख़ाने के केवल मख़तूतात का परिचय दो खण्डों में छपा है। कुतुबखाने में एक भाग दारुल उ़लूम के विद्वानों की सम्पादित व लिखित पुस्तकों के लिये सुरक्षित है जो शोधकर्ता और अध्यापकों के लिये विशेष दिलचस्पी की चीज़ है।
(5) शोबा-ए-तनज़ीम व तरक़्क़ी (व्यवस्था व विकास का विभाग)
यह शोबा दारुल उ़लूम के लिये आर्थिक व्यवस्था और अनाज जमा करने का कार्य करता है। चंदह वसूल करने के लिये 25 से अधिक सफ़ीर और राबता-ए-अ़ाम्मा (जन सम्पर्क) के लिये इस शोबे के अनेकांे प्रचारक कार्य कर रहे हैं। सफ़ीर देश के कोने-कोने में दौरे करते हैं और कम व अधिक हर स्थान से उन्हें आर्थिक साहयता मिलती है। इस शोबे के ज़िम्मेदार भी राबते को सुसंगठित करने के लिये इ़लाक़ों का दौरा किया करते हैं। यह शोबा 1355/1936 में स्थापित हुवा था, और अपनी स्थापना दिवस से ही उन्नति के मार्ग पर है। इस शोबे का अपना एक उप कार्यालय मुम्बई में शाख़ के रूप में काम करता है। इस के उद्देश्य में जन सम्पर्क और आर्थिक व्यवस्था के कार्य आते हैं।
(6) दारुल इक़ामह (छात्रावास विभाग)
दारुल इक़ामह दारुल उ़लूम का बड़ा कार्यरत विभाग कहलाता है। इस के अधिकार में विद्यार्थियों की तरबियत, सीटों का बंटवारा अदि कार्य हैं। विद्यार्थियों के लिये यात्रा कंशेसन जारी करना, परिचय पत्र बनाना, विद्यार्थियों के आपसी झगड़े निमटाना और दारुल उ़लूम के दरबानों (चैकीदारोें) की देख रेख इस की ज़िम्मेदारी में शामिल है। विभागाध्यक्ष के अ़लावह दस से अधिक वार्डन अलग-अलग छात्रावास में काम करते हैं। दूसरे विभागों की भांति इस विभाग का भी एक स्थाई कार्यालय है जो हर समय कार्यरत रहता है।
(7) शोबा मतबख़ (रसोईघर)
दारुल उ़लूम की स्थापना के बाद लगभग चालीस साल तक विद्यार्थियों के लिये खाने का प्रबंध की दो सूरतें थीं। कुछ विद्यार्थियों को शहर वाले खाना दिया करते थे और कुछ विद्यार्थियों को खाने का वज़ीफ़ा दारुल उ़लूम से दिया जाता था जिस से खाने का प्रबन्ध वे स्वयं करते थे। स्पष्ट है कि दोनों दशाओं में विद्यार्थियों को कठिनाई थी। इस कारण नकद वज़ीफ़े के बजाये 1328/1910 तक मतबख़ (रसोईघर) का प्रबन्ध आरम्भ हुवा। पहले साल में पच्चीस तीस विद्यार्थी खाने वाले थे। इस समय उन्नति करते हुए इस विभाग के आधीन लग भग ढाई हज़ार से अधिक व्यक्तियों का खाना तैयार होता है। मत़बख़ के कर्मचारी चालीस व्यक्तियों से अधिक हैं।
मत़बख़ के कार्याें में खाना बनाना और उस के आवश्यक सामान की तैयारी, खाने बांटना, मत़बख़ से ख़ाना प्राप्त करने वाले व्यक्तियों का रिकार्ड और पूरा हि़साब रखना शामिल है। खाना अच्छा देने का प्रयत्न किया जाता है। अगर किसी विद्यार्थी को शिकायत हो तो तुरन्त दूर की जाती है। इस प्रकार यह शोबा अपने स्थापना दिवस ही से बहुत सी जिम्मेदारियों को निभा रहा है। साल के बारह महीने यहां काम चलता रहता है।
आटा चक्कीन्न मतबख (किचन) की ज़रूरत को पूरा करने के लिये एक आटा चक्की कछ है, जो प्रतिदिन लग भग पन्द्रह कुन्टल से अधिक आटा पीसता है। मसाले के लिये दूसरी मशीनें भी हैं जो मत़बख़ की हर प्रकार की अवश्यकता पूरी करती हैं।
(8) शोबा तामीरात (भवन निर्माण विभाग)
नए भवनों का निर्माण, पुराने भवनों की मरम्मत और रंग व रोग़न का कोई विशेष समय निश्चित नहीं है। शैक्षिक सतर हो या छुट्टी यह शोबा अपना काम करता रहता है। पिछले दो दहाइयों में बहुत अधिक भवन निर्माण के कारण इस का कार्य कहीं से कहीं पहुंच गया। विशेष रूप से मस्जिद रशीद जो एक अनोखी इ़मारत है इस विभाग के कार्य का प्रदार्शन करती है। विशाल शेखल हिन्द पुस्तकालय और दार-ए-जदीद का निर्माणकार्य भी इसी विभाग के ज़िम्मे है।
(9) शोबा-ए-औक़ाफ़़ (वक़फ़ जायदादों से संबंधी विभाग)
दारुल उ़लूम की तमाम मिल्कियत व वक़्फ़ जायदाद की हि़फ़ाज़त और देखभाल कार्याें को पूरा करना इसी शोबे के ज़िम्मे है। औक़ाफ़ का सिलसिला दारुल उ़लूम की इ़मारतों के निर्माण के साथ ही आरम्भ हो गया था। समय-समय पर दानी लोग अपनी छोटी छोटी जायदादें दारुल उ़लूम के लिये वक़्फ़ करते रहे हैं। यह औक़ाफ़ विभिन्न स्थानों में स्थिर हैं। दारुल उ़लूम का यह शोबा वक़्फ़ की गयी इमारतों के किराये की वसूलयाबी, बढ़ोतरी का प्रयत्न, न देने वालों के खि़लाफ़ मुक़दमा चलाकर या किसी और साधन से किराया प्राप्त करने या मकान खा़ली कराने का संघर्ष भी करता है। यह विभाग दारुल उ़लूम की आमदनी वाले विभागों में गिना जाता है।
(10) सफ़ाई व चमन बन्दी
दारुल उ़लूम के सारे कैमपस मंे सफ़ाई पर विशेष ध्यान देने के लिये नियमानुसार यह शोबा स्थापित है। यह विभाग दारुल उ़लूम के तमाम रास्तों, बरामदों और शौचघर समेत दूसरे स्थानों की सफ़ाई का प्रबन्ध करता है। इसी के साथ चमन बन्दी और गार्डनिंग का काम भी इस विभाग के जिम्मे है। दारुल उ़लूम के आॅगन में विभिन्न चमन या बाग़ीचें हैं जो रंग बिरंग फूलों और वृक्षों से भरे हैं और दारुल उ़लूम की सुन्दरता को बढ़ाते हंै। इनकी देख भाल और कांट छांट कर के साफ़ रखना भी इस शोबे की ज़िम्मेदारी है जिस को यह शोबा पूरी तरह़ निभा रहा है।
(11) मकतबह दारुल उ़लूम (प्रकाशन विभाग)
यह दारुल उ़लूम की पूरानी प्रकाशनिक संस्था है। यहां से पाठय पुस्तकें और सामान्य पुस्तकें प्रकाशित होती हैं। अब तक इस विभाग के आधीन 17 खण्डों में फ़तावा दारुल उ़लूम सहित असंख्य उर्दु, अ़रबी, हिन्दी और इंगलिश पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।
(12) शोबा-ए-बरक़ियात (बिजली विभाग)
यह विभाग दारुल उ़लूम के तमाम दफतरों, मस्जिदों, दरसगाहों, रास्तों, विद्यार्थियों के कमरों और तमाम आवश्यक्ता के स्थानों पर बिजली प्रदान करता है। बिजली से सम्बंधित तमाम इन्तज़ाम करना और हर स्थान पर जल का पहुंचाना भी इसी विभाग की देख रेख में है। इस के अ़लावह दारुल उ़लूम की गाड़ियों की देख भाल, मरम्मत डराइवरों से सम्बंधित मामलात और गाड़ियों के प्रोग्राम की तरतीब आदि काम भी इसी शोबे के आधीन आता है। दरसगाहों में आवश्यकता के समय जलसे वग़ैरह में लाउड स्पीकर का प्रबन्ध करना भी इसी शोबे की ज़िम्मेदारी है।
(13) अ़ज़मत हस्पताल (चिकित्सा विभाग)
विद्यार्थियों के निःशुल्क इ़लाज और दवाओं की प्राप्ति के लिये अ़ज़मत हस्पताल के नाम से एक बड़ा चिकित्सा विभाग है जहां हर प्रकार की सुविधा प्राप्त है। विद्यार्थियों और दूसरे लोगों को मामूली फ़ीस पर दवा दी जाती है। विद्यार्थियों के अ़लावह ग़रीब लोगों के लिये यह बहुत लाभदायक हस्पताल है। इस में यूनानी और एलोपेथिक दोनो प्रकार का इ़लाज होता है। इस की सेवा भाव का अन्दाज़ह इस बात से लगाया जा सकता है कि एक साल में इस से लाभ उठाने वालों की संख्या लगभग एक लाख होती है।
(14) माहनामा दारुल उ़लूम (उर्दू मासिक पत्रिका)
ज़ुबान व क़लम की उपयोगिता और इस के द्वारा इसलामी शिक्षा, पूर्वजों का ज्ञान और अहल-ए-सुन्नत वल-जमाअ़त के मसलक के प्रसार की आवश्यकता होती है। 1328/1910 में मासिक ‘अल-क़ासिम‘ और 1332/1914 में मासिक ‘अल-रशीद‘ का प्रकाशन आरम्भ हुआ। इन दोनों पत्रिकाओं ने उच्चस्तर के साथ अपना कर्तव्य निभाया। मगर कुछ कारणों से ये सिलसिला बन्द हो गया परन्तु ज़रूरत का एह़सास बाक़ी रहा।
इस लिये 1360/1941 मेंु ’दारुल उ़लूम’ के नाम से एक मासिक जारी किया गया जो आज भी अपने स्तर को स्थिर रखे हुए है और नियमानुसार पाबन्दी से निकलता है। दारुल उ़लूम की वर्तमान प्रबन्धक समिति के विशेष ध्यान से कम्पोज़िंग और छपाई के साथ रंगीन टाईटल से सजा कर अधिक धार्मिक मज़मूनों पर मुश्तमिल यह पत्रिका दारुल उ़लूम की भरपूर तर्जुमानी कर रही है।
(15) माहनामा अल-दााइऱ् (अ़रबी मासिक पत्रिका)
दारुल उ़लूम दीनी संस्था के लिये अपना कोई अ़रबी भाषा का प्रवकता (तर्जुमान) होना अनिवार्य था जिस के द्वारा दारुल उ़लूम के ह़ालात और विचारधारा से अ़रबों को विशुद्ध अ़रबी भाषा में जानकारी मिल सके। इस उद्येष्य से 1385/1965 में तिमाही ’दअ़वतुल ह़क़’ का प्रकाशन आरम्भ हुवा। इस के बाद 1397/1977 में ’अल-दााइऱ्’ के नाम से एक पाक्षिक पत्र जारी हुआ, जो कुछ सालों के बाद मासिक के रूप में प्रकाशित होने लगा। ‘अल-दााइऱ्‘ उच्च स्तर का मासिक अ़रबी पत्रिका मानी जाती है। पूर्वजों के ज्ञान व उपयोगिता पर विशेष प्रकाशन का प्रबन्ध किया गया है। इस प्रकार अब प्रत्येक पक्ष पर इस का स्तर उॅचा हुवा है। अ़रब देशों में दारुल उ़लूम का यह तरजुमान (प्रवक्ता) बहुत उपयोगी माना जाता है।
(16) शोबा-ए-मेहमान खाना (गेस्ट हाउस)
दारुल उ़लूम पहले ही दिन से न केवल भारत के मुसलमानों का ही नहीं बल्कि समस्त इसलामी कौ़म के दिलों की धड़कन बना हुवा है जिस के कारण अधिक संख्या में मेहमानों की आमद होती है और दारुल उ़लूम को देखने या दूसरे कामों के लिये मेहमानों की एक बड़ी संख्या पहुंचती रहती है। इसलिये दारुल उ़लूम की ओर से एक बड़े और साफ़ सुथरे मेहमान खाने (गेस्ट हाउस) का प्रबन्ध है। यहॅा खाने पीने और रहने की सुविधा है। मेहमान खाने की सुन्दर इ़मारत देखने योग्य है। बीच में एक बड़ा हाल है जिस में मजलिस-ए-शूरा के इजलास होते हैं। शूरा के मेम्बरों के ठहरने का प्रबन्ध भी यहीं होता है। वर्तमान मेहमान खाने का भवन आधूनिक सुविधाओं से सुसज्जित है। मेहमानों के आराम व सुविधा में कोई कमी नहीं होती। मेहमान खाने का अपना एक अलग दफ़तर है।
(17) शोबा कम्प्यूटर टाइपिंग
यह पुस्तकों की कम्पोज़िंग का विभाग है। दारुल उ़लूम के उर्दू मासिक ‘दारुल उ़लूम‘ और अ़रबी मासिक ‘अल-दाई‘ पत्रिकाओं की टाइपिंग के लिये यह शोबा क़ायम किया गया है। यहां दारुल उ़लूम के अन्य काग़ज़ात, पत्र और पर्चे आदि भी लिखे जाते हंै।
(18) शोबा ख़रीदारी
यह शोबा दारुल उ़लूम के तमाम ज़रूरी सामान ख़रीदता है। दारुल उ़लूम के तमाम विभागों में आवश्यक वस्तुओं को मार्किट से ख़रीद कर प्रदान करता है और उस से सम्बन्धित हिसाब किताब भी रखता है।
(19) शोबा स्टाॅक रूम
इस शोबे में रोज़ाना के इस्तेमाल के सामानों का स्टाॅक रखा जाता है और ज़रूरत के मौक़े पर मांगे जाने पर अलग अलग शोबों को दिया जाता है।